बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) की जीवनी | Birju Maharaj Biography Hindi 2022
पंडित बृजमोहन मिश्र जिन्हें लोग प्यार,स्नेह और सम्मान के साथ बिरजू महाराज भी कहते थे उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद शहर के हंडिया गांव में हुआ था।इनका परिवार कत्थक नृत्य के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के घराने से ताल्लुक रखता है।जिन्हें सामान्यतः लोग अच्छन महाराज का घराना भी कहते है।
इनके जन्म के समय की एक घटना है कि जन्म के समय इनका नाम दुखहरण रखा गया था जिसे बाद में बदलकर बृजमोहन कर दिया गया था क्योंकि इनका जन्म जिस अस्पताल में हुआ था वहां उस दिन इनके जन्म से पहले सिर्फ लड़कियो का जन्म हुआ था।यही नाम आगे चलकर बृजमोहन से बिरजू और उसके बाद बिरजू महाराज हो गया।
Contents
- 1 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) और नृत्य कत्थक की शुरुआत
- 2 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) का कैरियर
- 3 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) और पुरस्कार
- 4 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) कत्थक का सरताज
- 5 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) का निजी जीवन
- 6 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) की मृत्यु
- 7 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) ताल,छंद और लय का मिश्रण
- 8 बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) का संघर्ष
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) और नृत्य कत्थक की शुरुआत
पंडित बृजमोहन मिश्र उर्फ बिरजू महाराज जब मात्र सात साल के थे तो इन्होंने अपने जीवन का प्रथम गायन आरंभ किया।इनके पिता रायगढ़ के रजवाड़े में दरबारी नर्तक थे।लेकिन केवल नौ वर्ष की उम्र में ही इनके पिता का देहांत हो गया और यह कुछ वर्षो के लिए अपने परिवार के साथ दिल्ली चले गए लेकिन यह कुछ वर्ष के बाद ही लखनऊ अपने चाचा लच्छू महाराज और शंभू महाराज के पास आ गये और उन्हीं से कत्थक नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) का परिचय एक नजर में
नाम | पंडित बृजमोहन मिश्र |
जन्म | 4 फ़रवरी 1938 |
जन्म स्थान | हंडिया, लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
आयु | 83 वर्ष |
मूल | भारतीय |
पिता का नाम | जगन्नाथ मिश्र उर्फ अच्छन महाराज |
मृत्यु | 17 जनवरी 2022 |
- घराना- लखनऊ का कालका-बिंदडिन घराना
- कार्य शैली – हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नर्तक (कत्थक)
- चाचाओ का नाम- लच्छू महाराज और शंभू महाराज
बिरजू महाराज पुरस्कार
- संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड(1964)
- पद्मा विभूषण(1986)
- नृत्य चूड़ामणि अवार्ड (1986)
- कालिदास सम्मान (1987)
- लता मंगेशकर पुरस्कार (2002)
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) का कैरियर
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) ने अपने चाचा लच्छू महाराज से कत्थक नृत्य सीखकर मात्र 13 साल की आयु में दिल्ली आकर नई दिल्ली के संगीत भारती स्कूल में नृत्य-संगीत की शिक्षा देना आरम्भ किया।
फिर इसके बाद इन्होंने दिल्ली में ही एक अन्य स्कूल भारतीय कला केन्द्र में सिखाना शुरू किया। फिर कुछ समय के उपरांत इन्होंने संगीत नाटक अकादमी की ही एक इकाई कत्थक केन्द्र में सीखाने का कार्य शुरू किया। बिरजू महाराज इस संकाय के अध्यक्ष के साथ-साथ निदेशक भी थे। वर्ष 1998 में बिरजू महाराज इस संकाय से सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद अपने बलबूते और अथक परिश्रम से इन्होंने दिल्ली में ही कलाश्रम के नाम से एक नाट्य विद्यालय की स्थापना की।
यहीं नही पंडित बिरजू महाराज ने बॉलीवुड में भी अपना कौशल को दिखाया।इन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी से बॉलीवुड में प्रदापन किया उन्होंने इस फिल्म के लिए संगीत की रचना की और साथ ही साथ नृत्य पर आधारित गाना भी गाया।
इसके साथ-साथ 2002 वर्ष में रिलीज हुई हिन्दी फ़िल्म देवदास में भी एक गाना काहे छेड़ छेड़ मोहे का नृत्य का संयोजन भी किया। इसके अलावा इन्होनें अन्य हिन्दी फ़िल्मों जैसे विश्वरूप, डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली निर्देशित बाजी राव मस्तानी और अभी हाल में ही बनी कंलक फिल्म में भी इन्होंने कत्थक नृत्य का संयोजन किया।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) और पुरस्कार
- संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड(1964)
- पद्मा विभूषण(1986)
- नृत्य चूड़ामणि अवार्ड (1986)
- कालिदास सम्मान (1987)
- लता मंगेशकर पुरस्कार (2002)
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित,भरत मुनि सम्मान,संगम कला अवार्ड ,आंध्र रत्न,आधारशिला शिखर सम्मान,नृत्य विलास अवार्ड, राजीव गाँधी नैशनल सदभावना अवार्ड, नैशनल नृत्य शिरोमणि अवार्ड
इसके अलावा फिल्मों में भी इनके काम को बहुत सराहा गया और पुरस्कृत किया गया। नैशनल फिल्म अवार्ड बेस्ट कोरियोग्राफी विशवरूपम फिल्म के लिए वर्ष 2012 में वर्ष 2016 में फिल्मफेयर अवार्ड बेस्ट कोरियोग्राफी मोहे रंग दो लाल गाने पर नृत्य के लिए फिल्म बाजीराव मस्तानी में
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) कत्थक का सरताज
लय,संगीत और छंद की बात हो और बिरजू महाराज की बात न हो यह संभव ही नही हैं। बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) न केवल एक अच्छे कत्थक नर्तक थे बल्कि एक बहुत ही अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे।इन्होंने कत्थक नृत्य को एक नई पहचान दिलाई।
इनके नृत्य केवल पौराणिक कथाओ पर ही आधारित नही थे बल्कि वह अपने नृत्य के द्वारा समाज में व्याप्त बुराई और भ्रष्टाचार की तरफ भी ध्यान केंद्रित करते थे।बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र )ने कत्थक नृत्य में नये- नये भाव- भंगिमा और आयामो को जोड़कर नृत्य-नाटिकाओं को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।यही नही इनका कत्थक नृत्य के प्रति इतना अधिक प्रेम, लगन व श्रद्धा थी कि इन्होंने केवल कत्थक नृत्य के लिए ”कलाश्रम”’ की नींव रखी।
इतना ही नही इन्होंने विश्व भर में सहस्रों कत्थक नृत्य का कार्यक्रम किया और साथ ही साथ कत्थक नृत्य के विधार्थीयो के लिए कई सारे कार्यशालाओ का आयोजन भी किया।
कत्थक नृत्य में इन्होने कई तरह की नृत्यावलियों की रचना की जैसे कुमार संभव,मसलन,माखन चोरी, गोवर्धन लीला,मालती-माधव, और फाग बहार।इस के अलावा वाद्यों और ताल की उनकी अपनी कुछ खास ही समझ थी।
इन्होंने तबला, ढोलक,पखावज,वायलिन और नाल जैसे वाद्य-यंत्रों के सुरों का भी ज्ञान था। इन्होने जाकिर हुसैन के साथ तबला पर संगत भी दिया तो राजन- साजन जैसे गायक के साथ गायकी भी की।इनके कुछ शिष्यों के नाम है:- सस्वती सेन, अदिति मंगलदास, और निशा महाजन इत्यादि।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) का निजी जीवन
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र )के पिताजी का नाम जगन्नाथ मिश्र (महाराज) था, वह लखनऊ के कालका-बिंदडिन घराने से संबंध रखते थे। लोग पंडित जगन्नाथ मिश्र (महाराज) को अच्छन महाराज के नाम से भी जानते थे।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र )की माँ का नाम अम्मा जी महाराज था।पिता की असमय मृत्यु से पंडित बिरजू महाराज अपनी माता के साथ लखनऊ अपने चाचाओ के पास आ गये। बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र )के चाचाओ का नाम लच्छू महाराज और शंभू महाराज था।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) की पत्नी का नाम संतोषी था।बिरजू महाराज के पांच बच्चें हैं, तीन बेटियां और दो बेटे।इनकी तीन बेटियों के नाम कविता महाराज, अनीता महाराज और ममता महाराज है। और इनके दो बेटो का नाम जयकिशन महाराज और दीपक महाराज है।
इनके तीन बच्चे, ममता महाराज, दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी कत्थक नृत्य के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाया है।बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) की शिष्यों के नाम रश्मी वाजपेयी,शाश्वती, सस्वती सेन, अदिति मंगलदास, और निशा महाजन और दुर्गा है।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र ) की मृत्यु
17 जनवरी 2022 को बिरजू महाराज उर्फ पंडित बृजमोहन मिश्र ने दिल्ली स्थित साकेत के अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। वह काफी समय से किडनी के बीमारी से पीड़ित थे और बीमार चल रहे थे।
बिरजू महाराज अपने अंतिम समय में अपने परिवार (बच्चे और पोते पोतियो) के साथ अंताक्षरी खेल रहे थे की तभी अचानक से उनकी तबीयत अत्यधिक हो गई।उन्हें आनन फानन में अस्पताल में भर्ती किया गया जहां कार्डियक अरेस्ट होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) ताल,छंद और लय का मिश्रण
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) कला के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। नृत्य के जानकारो, आचार्यों और विशेषज्ञो का तो बस यही मानना था कि पंडित बिरजू महाराज की कला में अपने पिता अच्छन महाराज का संतुलन तो चाचा लच्छू महाराज के लास्य और दूसरे चाचा शंभू महाराज का जोश एक साथ उनके शरीर में त्रिवेणी की भांति बहता है।सारे वाद्ययंत्र पंडित बिरजू महाराज के इशारे मानो भली भांति समझते हो।
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) का संघर्ष
बिरजू महाराज (पंडित बृजमोहन मिश्र) के पिताजी की असमय मृत्यु होने के कारणवश उन्होंने कम उम्र से ही कमाना शुरू कर दिया बिरजू महाराज केवल नौ साल में ही नेपाल चले गए। नेपाल के बाद वहाँ से मुजफ्फरपुर और उसके बाद रायबरेली भी गए।
इसके बाद वह कानपुर में दो-ढाई साल रहे। उन्होंने कानपुर के आर्यनगर में ही 20-25 रुपए की दो टयूशन पढाने की शुरुआत करी। और टयूशन से मिले रुपयों से इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।लेकिन पारिवारिक परेशानी और चिंताओं के कारण बिरजू महाराज हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाये।
उसके बाद वह मात्र 14 साल की आयु में अपने चाचाओ लच्छू महाराज और शंभू महाराज से कत्थक नृत्य के गुर सीखे।बिरजू महाराज शुरुआत से ही अपने पिता जगन्नाथ महाराज को नृत्य करते हुए देखे थे और नृत्य से परिचित थे इसलिए वह जल्दी ही कत्थक नृत्य के ताल और लय को पकड़ लिये।
फिर वह इधर-उधर कार्यक्रम करने लगे।और जब वह 22 साल के हो गये तो वह दिल्ली आ गये और संगीत भारती कला केन्द्र में प्रशिक्षण देने लगे। इसके बाद इन्होंने कभी पिछे मुड़कर नही देखा इन्होंने न केवल भारत देश में बल्कि दुनियाभर में कत्थक नृत्य और शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम दिया।
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